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श्रीकन्हैया जी महाराज

विश्व प्रख्यात भागवत् कथा वक्ता

Month

November 2015

वृन्दावन पाठ

🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸
रंगीलो राधेवल्लभलाल, जे जे जे श्री वृंदावन ।
विहरत संग लाडिली वाल, जे जे जे श्री वृंदावन ।।
जमुना नील मणिन की माल,जे जे जे श्री वृंदावन ।
प्रेम सुरस वरषत सब काल, जे जे जे श्री वृंदावन ।।
सखिन संग राजत जुगल किशोर, जे जे जे श्री वृंदावन।
अद्भुत छवि साझ अरू भोर, जे जे जे श्री वृंदावन।।
प्रेम कि नदी वहे चहुं ओर, जे जे जे श्री वृंदावन।
आनंद रंग को ओर न छोर, जे जे जे श्री वृंदावन।।
दुर्लभ पिय प्यारी को धाम ,जे जे जे श्री वृंदावन।
चहु दिसि गुंजत राधा नाम, जे जे जे श्री वृंदावन।।
नेननि निरखिये श्यामा श्याम,जे जे जे श्री वृंदावन।
मनवा लेत परम विश्राम, जे जे जे श्री वृंदावन।।
धनि धनि श्री किनका परसाद,जे जे जे श्री वृंदावन।
सभे सुख एक सीथ के स्वाद,जे जे जे श्री वृंदावन।।
सर्वसु मान्यो हित प्रभुपाद,जे जे जे श्री वृंदावन।
धनि धनि ब्रजवासी बड़भाग, जे जे जे श्री वृंदावन।।
जिनके ह्रये सहज अनुराग, जे जे जे श्री वृंदावन।
लेत सुखरास हिंडोला, फाग,जे जे जे श्री वृंदावन।।
गावन जीवन जुगल सुहाग,जे जे जे श्री वृंदावन।
छवीली वृंदावन की वेलि, जे जे जे श्री वृंदावन।।
छाह तरे करें जुगल रस केलि,जे जे जे श्री वृंदावन।
मंद मुसिकात अंस भुज मेली,जे जे जे श्री वृंदावन।।
रसिक दें कोटी मुक्ति पग पेलि,जे जे जे श्री वृंदावन।
पावन वृंदावन की धुरि,जे जे जे श्री वृंदावन।।
परस किये पाप ताप सब दूरि,जे जे जे श्री वृंदावन।
रसिक जननि की जीवन मूरि,जे जे जे श्री वृंदावन।।
हित को राज सदा भरपूर, जे जे जे श्री वृंदावन।
रसीली मनमोहन की वेणु,जे जे जे श्री वृंदावन।।
कोन हरिवंशी समरस देन,जे जे जे श्री वृंदावन।
अगोचर नित विहार दरसेन, जे जे जे श्री वृंदावन।।
मन पायो निकुंजनि ऐन,जे जे जे श्री वृंदावन

श्री कन्हैया जी महाराज

अगर आप संस्कृत पढना / या समझना चाहते है तो इस मेसेज को पढकर जरूर प्रिंट निकलवा कर अपने पुस्तककोश में सम्मान देगे।
ॐ ॥ पारिवारिक नाम संस्कृत मे ……
जनक: – पिता , माता – माता
पितामह: – दादा , पितामही – दादी
प्रपितामह: – परदादा , प्रतितामही – परदादी
मातामह: – नाना , मातामही – नानी
प्रमातामह: – परनाना , प्रमातामही – परनानी
वृद्धप्रतिपितामह – वृद्धपरनाना
पितृव्य: – चाचा , पितृव्यपत्नी – चाची
पितृप्वसृपितृस्वसा – फुआ , पितृस्वसा – फूफी
पैतृष्वस्रिय: – फुफेराभाई
पति: – पति , भार्या – पत्नी
पुत्र: / सुत: / आत्मज: – पुत्र , स्नुषा – पुत्र वधू
जामातृ – जँवाई ( दामाद ) , आत्मजा – पुत्री
पौत्र: – पोता , पौत्री – पोती
प्रपौत्र:,प्रपौत्री – पतोतरा
दौहित्र: – पुत्री का पुत्र , दौहितत्री – पुत्री का पुत्री
देवर: – देवर , यातृ,याता – देवरानी , ननांदृ,ननान्दा – ननद
अनुज: – छोटाभाई , अग्रज: – बड़ा भाई
भ्रातृजाया,प्रजावती – भाभी
भ्रात्रिय:,भ्रातृपुत्र: – भतीजा , भ्रातृसुता – भतीजी
पितृव्यपुत्र: – चचेराभाई , पितृव्यपुत्री – चचेरी बहन
आवुत्त: – बहनोई , भगिनी – बहिन , स्वस्रिय:,भागिनेय: – भानजा
नप्तृ,नप्ता – नाती
मातुल: – मामा , मातुली – मामी
मातृष्वसृपति – मौसा , मातृस्वसृ,मातृस्वसा – मौसी
मातृष्वस्रीय: – मौसेरा भाई
श्वशुर: – ससुर , श्वश्रू: – सास , श्याल: – साला
सम्बन्धीन् – समधी, सम्बन्धिनि – समधिन

पशव: ।।
उंट – उष्‍ट्र‚ क्रमेलकः
उद्बिलाव –
कछुआ – कच्‍छप:
केकडा – कर्कट: ‚ कुलीरः
कुत्‍ता – श्‍वान:, कुक्कुर:‚ कौलेयकः‚ सारमेयः
कुतिया – सरमा‚ शुनि
कंगारू – कंगारुः
कनखजूरा – कर्णजलोका
खरगोश – शशक:
गाय – गो, धेनु:
गैंडा – खड्.गी
गीदड (सियार) – श्रृगाल:‚ गोमायुः
गिलहरी – चिक्रोड:
गिरगिट – कृकलास:
गोह – गोधा
गधा – गर्दभ:, रासभ:‚ खरः
घोडा – अश्‍व:, सैन्‍धवम्‚ सप्तिः‚ रथ्यः‚ वाजिन्‚ हयः
चूहा – मूषक:
चीता – तरक्षु:, चित्रक:
चित्‍तीदार घोडा – चित्ररासभ:
छछूंदर – छुछुन्‍दर:
छिपकली – गृहगोधिका
जिराफ – चित्रोष्‍ट्र:
तेंदुआ – तरक्षुः
दरियाई घोडा – जलाश्‍व:
नेवला – नकुल:
नीलगाय – गवय:
बैल – वृषभ: ‚ उक्षन्‚ अनडुह
बन्‍दर – मर्कट:
बाघ – व्‍याघ्र:‚ द्वीपिन्
बकरी – अजा
बकरा – अज:
बनमानुष – वनमनुष्‍य:
बिल्‍ली – मार्जार:, बिडाल:
भालू – भल्‍लूक:
भैस – महिषी
भैंसा – महिषः
भेंडिया – वृक:
भेंड – मेष:
मकड़ी – उर्णनाभः‚ तन्तुनाभः‚ लूता
मगरमच्‍छ – मकर: ‚ नक्रः
मछली – मत्स्यः‚ मीनः‚ झषः
मेंढक – दर्दुरः‚ भेकः
लोमडी -लोमशः
शेर – सिंह:‚ केसरिन्‚ मृगेन्द्रः‚ हरिः
सुअर – सूकर:‚ वराहः
सेही – शल्यः
हाथी – हस्ति, करि, गज:
हिरन – मृग:
बाल – केशा:
2- माँग – सीमन्‍तम्
3- सफेद बाल – पलितकेशा:
4- मस्‍तक – ललाटम्
5- भौंह – भ्रू:
6- पलक – पक्ष्‍म:
7- पुतली – कनीनिका
8- नाक – नासिका
9- उपरी ओंठ – ओष्‍ठ:
10- निचले ओंठ – अधरम्
11- ठुड्डी – चिबुकम्
12- गाल – कपोलम्
13- गला – कण्‍ठ:
14- दाढी, मूँछ- श्‍मश्रु:
15- मुख – मुखम्
16- जीभ – जिह्वा
17- दाँत- दन्‍ता:
18- मसूढे – दन्‍तपालि:
19- कन्‍धा – स्‍कन्‍ध:
20- सीना – वक्षस्‍थलम्
21- हाँथ – हस्‍त:
22- अँगुली – अंगुल्‍य:
23- अँगूठा – अँगुष्‍ठ:
24- पेट – उदरम्
25- पीठ – पृष्‍ठम्
26- पैर – पाद:
27- रोएँ – रोम
।।संस्कृतं सर्वेषां संस्कृतं सर्वत्र📚।।
*शब्दान् जानीमहे वाक्यप्रयोगञ्च कुर्महे >
विमानम् ।
उपायनम् ।
🚘 यानम् ।
आसन्दः / आसनम् ।
नौका ।
पर्वत:।
🚊 रेलयानम् ।
लोकयानम् ।
द्विचक्रिका ।
🇮🇳 ध्वज:।
शशक:।
व्याघ्रः।
वानर:।
अश्व:।
मेष:।
गज:।
🐢 कच्छप:।
🐜 पिपीलिका ।
मत्स्य:।
🐄 धेनु: ।
🐃 महिषी ।
🐐 अजा ।
🐓 कुक्कुट:।
🐁 मूषक:।
🐊 मकर:।
🐪 उष्ट्रः।
पुष्पम् ।
पर्णे (द्वि.व)।
🌳 वृक्ष:।
🌞 सूर्य:।
🌛 चन्द्र:।
⭐ तारक: / नक्षत्रम् ।
☔ छत्रम् ।
👦 बालक:।
👧 बालिका ।
👂 कर्ण:।
👀 नेत्रे (द्वि.व)।
👃नासिका ।
👅 जिह्वा ।
👄 औष्ठौ (द्वि.व) ।
👋 चपेटिका ।
💪 बाहुः ।
🙏 नमस्कारः।
👟 पादत्राणम् (पादरक्षक:) ।
👔 युतकम् ।
💼 स्यूत:।
👖 ऊरुकम् ।
👓 उपनेत्रम् ।
💎 वज्रम् (रत्नम् ) ।
💿 सान्द्रमुद्रिका ।
🔔 घण्टा ।
🔓 ताल:।
🔑 कुञ्चिका ।
⌚ घटी।
💡 विद्युद्दीप:।
🔦 करदीप:।
🔋 विद्युत्कोष:।
🔪 छूरिका ।
✏ अङ्कनी ।
📖 पुस्तकम् ।
🏀 कन्दुकम् ।
🍷 चषक:।
🍴 चमसौ (द्वि.व)।
📷 चित्रग्राहकम् ।
💻 सड़्गणकम् ।
📱जड़्गमदूरवाणी ।
☎ स्थिरदूरवाणी ।
📢 ध्वनिवर्धकम् ।
⏳समयसूचकम् ।
⌚ हस्तघटी ।
🚿 जलसेचकम् ।
🚪द्वारम् ।
🔫 भुशुण्डिका ।(बु?) ।
🔩आणिः ।
🔨ताडकम् ।
💊 गुलिका/औषधम् ।
💰 धनम् ।
✉ पत्रम् ।
📬 पत्रपेटिका ।
📃 कर्गजम्/कागदम् ।
📊 सूचिपत्रम् ।
📅 दिनदर्शिका ।
✂ कर्त्तरी ।
📚 पुस्तकाणि ।
🎨 वर्णाः ।
🔭 दूरदर्शकम् ।
🔬 सूक्ष्मदर्शकम् ।
📰 पत्रिका ।
🎼🎶 सड़्गीतम् ।
🏆 पारितोषकम् ।
⚽ पादकन्दुकम् ।
☕ चायम् ।
🍵पनीयम्/सूपः ।
🍪 रोटिका ।
🍧 पयोहिमः ।
🍯 मधु ।
🍎 सेवफलम् ।
🍉कलिड़्ग फलम् ।
🍊नारड़्ग फलम् ।
🍋 आम्र फलम् ।
🍇 द्राक्षाफलाणि ।
🍌कदली फलम् ।
🍅 रक्तफलम् ।
🌋 ज्वालामुखी ।
🐭 मूषकः ।
🐴 अश्वः ।
🐺 गर्दभः ।
🐷 वराहः ।
🐗 वनवराहः ।
🐝 मधुकरः/षट्पदः ।
🐁मूषिकः ।
🐘 गजः ।
🐑 अविः ।
🐒वानरः/मर्कटः ।
🐍 सर्पः ।
🐠 मीनः ।
🐈 बिडालः/मार्जारः/लः ।
🐄 गौमाता ।
🐊 मकरः ।
🐪 उष्ट्रः ।
🌹 पाटलम् ।
🌺 जपाकुसुमम् ।
🍁 पर्णम् ।
🌞 सूर्यः ।
🌝 चन्द्रः ।
🌜अर्धचन्द्रः ।
⭐ नक्षत्रम् ।
☁ मेघः ।
⛄ क्रीडनकम् ।
🏠 गृहम् ।
🏫 भवनम् ।
🌅 सूर्योदयः ।
🌄 सूर्यास्तः ।
🌉 सेतुः ।
🚣 उडुपः (small boat)
🚢 नौका ।
✈ गगनयानम्/विमानम् ।
🚚 भारवाहनम् ।
🇮🇳 भारतध्वजः ।
1⃣ एकम् ।
2⃣ द्वे ।
3⃣ त्रीणि ।
4⃣ चत्वारि ।
5⃣ पञ्च ।
6⃣ षट् ।
7⃣ सप्त ।
8⃣ अष्ट/अष्टौ ।
9⃣ नव ।
🔟 दश ।
2⃣0⃣ विंशतिः ।
3⃣0⃣ त्रिंशत् ।
4⃣0⃣ चत्त्वारिंशत् ।
5⃣0⃣ पञ्चिशत् ।
6⃣0⃣ षष्टिः ।
7⃣0⃣ सप्ततिः ।
8⃣0⃣ अशीतिः ।
9⃣0⃣ नवतिः ।
1⃣0⃣0⃣ शतम्।
⬅ वामतः ।
➡ दक्षिणतः ।
⬆ उपरि ।
⬇ अधः ।
🎦 चलच्चित्र ग्राहकम् ।
🚰 नल्लिका ।
🚾 जलशीतकम् ।
🛄 यानपेटिका ।
📶 तरड़्ग सूचकम् ( तरड़्गाः)
+ सड़्कलनम् ।
– व्यवकलनम् ।
× गुणाकारः ।
÷ भागाकारः ।
% प्रतिशतम् ।
@ अत्र (विलासम्)।
⬜ श्वेतः ।
🔵 नीलः ।
🔴 रक्तः ।
⬛ कृष्णः ।
इदानीं वाक्यप्रयोगं कुर्मः ……….
संस्कृतेन सम्भाषणं कुर्मः ……..
जीवनस्य परिवर्तनं कुर्मः ……
पुष्पनाम संस्कृतम्
१ कनेर कर्णिकार:
२ कमल (नीला) इन्‍दीवरम्
३ कमल (श्‍वेत) कैरवम्
४ कमल (लाल) कोकनदम्, पद्मम्
५ कुमुदनी कुमुदम्
६ कुन्‍द कुन्‍दम्
७ केवडा केतकी
८ गुलाब पाटलम्
९ गेंदा स्‍थलपद्मम्
१० चम्‍पा चम्‍पक:
११ चमेली
१२ जवापुष्‍प जपापुष्‍पम्
१३ जूही यूथिका
१४ दुपहरिया बन्‍धूक:
१५ नेवारी नवमालिका
१६ बेला मल्लिका
१७ मौलसरी बकुल:
१८ रातरानी रजनीगन्‍धा
१९ हरसिंगार शेफालिका
२० मालती मालतीपुष्‍प

श्री कन्हैया जी महाराज

👌एक सुन्दर और प्रेरणा पूर्ण पंक्तियाँ 👉

पायल हज़ारो रूपये में आती है पर पैरो में पहनी जाती है
और…..
बिंदी 1 रूपये  में आती है  मगर माथे पर सजाई जाती है
इसलिए कीमत मायने नहीं रखती उसका मान मायने रखता हैं
💐🙏

एक किताबघर में पड़ी गीता और कुरान आपस में कभी नहीं लड़ते,

और जो उनके लिए लड़ते हैं वो कभी उन दोनों को नहीं पढ़ते….🙏 🙏

नमक की तरह कड़वा ज्ञान देने वाला ही सच्चा मित्र होता है,
मिठी बात करने वाले तो चापुलुस भी होते है
इतिहास गवाह है की आज तक कभी नमक में कीड़े नहीं पड़े।
और मिठाई में तो अक़्सर कीड़े पड जाया करते है ……………….🙏🙏

श्री कन्हैया जी महाराज

तुलसी विवाह की हार्दिक शुभकामनायें

⭕⭕⭕पदम पुराण में कहा गया है –⭕⭕⭕

“तुलसी जी के दर्शन मात्र से सम्पूर्ण पापों की राशि नष्ट हो जाती है,उनके स्पर्श से शरीर पवित्र हो जाता है,उन्हे प्रणाम करने से रोग नष्ट हो जाते है,सींचने से मृत्यु दूर भाग जाती है,तुलसी जी का वृक्ष लगाने से भगवान की सन्निधि प्राप्त होती है,औरउन्हे भगवान के चरणो में चढाने से मोक्ष रूप महान फल की प्राप्ति होती है.”
अंत काल के समय ,तुलसीदल या आमलकी को मस्तक या देह पर रखने से नरक का द्वार , आत्मा के लिए बंद हो जाता है
धात्री फलानी तुलसी ही अन्तकाले भवेद यदि
मुखे चैव सिरास्य अंगे पातकं नास्ति तस्य वाई —
🙏तुलसी जी के आठ नाम बताये गए है –

वृंदा, वृंदावनि, विश्व पूजिता, विश्व पावनी, पुष्पसारा, नन्दिनी, तुलसी और कृष्ण जीवनी
🙏तुलसीजी के नामो के अर्थ -🙏

वृंदा : सभी वनस्पति व वृक्षों की आधि देवी
वृन्दावनी : जिनका उदभव व्रज में हुआ
विश्वपूजिता : समस्त जगत द्वारा पूजित
विश्व -पावनी : त्रिलोकी को पावन करनेवाली
पुष्पसारा : हर पुष्प का सार
नंदिनी : ऋषि  मुनियों को आनंद प्रदान करनेवाली
कृष्ण -जीवनी : श्री कृष्ण की प्राण जीवनी .
तुलसी : अद्वितीय
     🌺 तुलसी जी की कथा 🌺

एक लड़की थी जिसका नाम वृंदा था राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था बचपन से ही भगवान विष्णु जी की भक्त थी.बड़े ही प्रेम से भगवान की सेवा,पूजा किया करती थी .जब वे बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जालंधर से हो गया,जालंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था.वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी सदा अपने पति की सेवा किया करती थी.

एक बार देवताओ और दानवों में युद्ध हुआ जब जालंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा – स्वामी आप युध पर जा रहे है आप जब तक युद्ध में रहेगे में पूजा में बैठकर आपकी जीत के लिये अनुष्ठान करुगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते में अपना संकल्प नही छोडूगी,जालंधर तो युद्ध में चले गये,और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गयी,उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जालंधर को ना जीत सके सारे देवता जब हारने लगे तो भगवान विष्णु जी के पास गये.
सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि – वृंदा मेरी परम भक्त है में उसके साथ छल नहीं कर सकता पर देवता बोले – भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते है.

भगवान ने जालंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पँहुच गये जैसे ही वृंदा ने अपने पति को देखा,वे तुरंत पूजा मे से उठ गई और उनके चरणों को छू लिए,जैसे ही उनका संकल्प टूटा,युद्ध में देवताओ ने जालंधर को मार दिया और उसका सिर काटकर अलग कर दिया,उनका सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पडा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है?

उन्होंने पूँछा – आप कौन हो जिसका स्पर्श मैने किया,तब भगवान अपने रूप में आ गये पर वे कुछ ना बोल सके,वृंदा सारी बात समझ गई,उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के हो जाओ,भगवान तुंरत पत्थर के हो गये सबी देवता हाहाकार करने लगे  लक्ष्मी जी रोने लगे और प्राथना करने लगे यब वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे सती हो गयी.
उनकी राख से एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने कहा –आज से इनका नाम तुलसी है,और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिगराम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा और में बिना तुलसी जी के भोग स्वीकार नहीं करुगा.तब से तुलसी जी कि पूजा सभी करने लगे.

“श्री तुलसी प्रणाम वृन्दायी तुलसी -देव्यै
प्रियायाई केसवास्य चविष्णु -भक्ति -प्रदे देवी सत्यवात्याई नमो नमः”
मैं श्री वृंदा देवी को प्रणाम करत हूँ जो तुलसी देवी हैं , जो भगवान् केशव की अति प्रिय हैं – हे देवी !आपके प्रसाद स्वरूप , प्राणी मात्र में भक्ति भाव का उदय होता है

श्री कन्हैया जी महाराज

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श्री कन्हैया जी महाराज

भगवत कथा

जो केवल अपना भला चाहता है
वह दुर्योधन है॥

जो अपनों का भला चाहता है
वह युधिष्ठिर है॥

और जो सबका भला चाहता है
वह श्री कृष्ण है॥

कर्म के साथ-साथ
भावनाएँ भी महत्व रखती हैं॥…

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