​”दरिद्रता धीरतया विराजते कुवस्त्रता शुभ्रतया विराजते ।

कदन्नता चोष्णतया विराजते कुरूपता शीलतया विराजते ।।”

(चाणक्य-नीतिः—९.१४)
अर्थः—-यदि दरिद्र (गरीब) व्यक्ति के पास धैर्य रूपी धन हो तो दरिद्रता (गरीबी) कष्टदायक नहीं होती ।
यदि वस्त्र पुराना या फटा हो, किन्तु यदि साफ व पवित्र हो तो बुरा नहीं होता अपितु सुन्दर ही लगता है ।
यदि खराब भोजन हो, किन्तु गरम कर लिया जाए तो वह रुचिकर लगता है ।
यदि व्यक्ति कुरूप अर्थात् सुन्दर न हो, किन्तु उसके पास शील आदि अनेक गुण हो तो वह सबको अच्छा ही लगता है, किसी की आँखों में नहीं खटकता ।