जय श्री राधे।
आज का लेख
श्री कन्हैया जी महाराज के कलम से✒
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आज विवाह पंचमी का पावन दिवस है।
विवाह पंचमी पर भगवान श्रीराम एवं जगत जननी माता सीताजी का शुभ विवाह हुआ था।
विवाह केवल स्त्री और पुरुष के गृहस्थ जीवन में प्रवेश का ही प्रसंग नहीं है बल्कि यह जीवन को संपूर्णता देने का अवसर है।
श्रीराम के विवाह के जरिए हम विवाह की महत्ता और उसके गहन अर्थों से रूबरू हो सकते हैं।
भारत में कई स्थानों पर विवाह पंचमी को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
मार्गशीर्ष (अगहन) मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को भगवान श्रीराम तथा जनकपुत्री जानकी (माता सीता) का विवाह हुआ था, तभी से इस पंचमी को ‘विवाह पंचमी पर्व’ के रूप में मनाया जाता है।
पौराणिक धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इस तिथि को भगवान रामजी ने जनक नंदिनी सीताजी से विवाह किया था।
तुलसीदासजी कहते हैं कि:- ‘श्रीराम ने विवाह द्वारा मन के तीनों विकारों काम, क्रोध और लोभ से उत्पन्न समस्याओं का समाधान प्रस्तुत किया गया है।’
श्री रामकिंकर जी महाराज ने राम विवाह की बड़ी ही सुंदर व्याख्या करते हुए लिखा है:-
‘संसार के विवाह और श्रीराम के मंगलमय विवाह में अंतर क्या है?
यह जो भगवद्-रस है, वह व्यक्ति को बाहर से भीतर की ओर ले जाता है, और बाहर से भीतर जाना जीवन में परम आवश्यक है।
व्यवहार में भी आप देखते हैं, अनुभव करते हैं कि जब तीव्र गर्मी पड़ने लगे, धूप हो तो आप क्या करते हैं, बाहर से भीतर चले जाते हैं।
वर्षा में भी आप बाहर से भीतर चले जाते हैं, अर्थात बाहर चाहे वर्षा या धूप हो, घर में तो आप सुरक्षित हैं।
इसी प्रकार जीवन में भी कभी वासना के बादल बरसने लगते हैं, क्रोध की धूप व्यक्ति को संतप्त करने लगती है, मनोनुकूल घटनाएं नहीं घटती हैं, ऐसे समय में अगर हम अंतर्जगत में, भाव राज्य में प्रविष्ठ हो सकें तो एक दिव्य शीतलता, प्रेम और आनंद की अनुभूति होगी।
भगवान श्री सीताराम के विवाह को हम अन्तर्हृदय में देखें, ध्यान करें, लीला में स्वयं सम्मिलित हों, इस विवाह का उद्देश्य है।’
इस तरह से देखा जाए तो श्रीराम विवाह के गंभीर अर्थ की तरफ हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं।
वे हमें जीवन के इस महत्वपूर्ण प्रसंग के वास्तविक अर्थ से रूबरू करवाते हैं।
श्री रामकिंकर जी महाराज आगे लिखते हैं:-
‘श्रीराम के विवाह में घटनाएं केवल मनोरंजन प्रधान नहीं, सांसारिक व्यवहार की अपेक्षा
मनस्तत्त्व की प्रधानता है पर यहां मन, बुद्धि, चित्त के द्वारा हम परमात्मा का साक्षात्कार कर सकते हैं।’
इस विवाह के संदर्भ में गोस्वामीजी ने वर्णन किया है कि विवाह को ज्ञानियों ने किस दृष्टि से देखा, योगियों ने क्या अर्थ लिया, भक्तों ने इसमें कैसा परमानंद पाया?
और उन्होंने दो कथित विरोधी काम और राम में विलक्षण समन्वय तब बैठाया, जब विवाह मंडप में दोनों को एक साथ प्रस्तुत किया।
विवाह का प्रमुख देवता ‘काम’ है, पर इस
प्रसंग में ‘काम’ राम का विरोधी न रहकर सहयोगी बन गया।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम-सीता के शुभ विवाह के कारण ही विवाह पंचमी का दिन अत्यंत पवित्र माना जाता है।
भारतीय संस्कृति में श्रीराम-सीता आदर्श दंपति हैं।
श्रीराम ने जहां मर्यादा का पालन करके आदर्श पति और पुरुषोत्तम पद प्राप्त किया वहीं माता सीता ने सारे संसार के समक्ष अपने पतिव्रता
धर्म के पालन का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया।
इस पावन दिन सभी दंपतियों को श्रीराम-सीता से प्रेरणा लेकर अपने दांपत्य को मधुरतम बनाने का संकल्प करना चाहिए।
श्री राम-जानकी का विवाह पंचमी के दिन विधि-विधान के साथ जनकपुरी से 14 किलोमीटर दूर ‘उत्तर धनुषा’ नाम स्थान पर हुआ था है।
जनकपुर वर्तमान में नेपाल में स्थित है, यहां कुछ दूर उत्तर धनुषा में बताया जाता है कि रामचंद्रजी ने इसी जगह पर धनुष तोड़ा था। पत्थर के टुकड़े को इस प्रसंग का अवशेष बताया जाता है।
पूरे वर्षभर और खासकर ‘विवाह-पंचमी’ पर यहां दर्शनार्थियों की भीड़ रहती है।
विवाह ऐसा संस्कार है जिसे प्रभु श्रीराम और श्रीकृष्ण ने भी अपनाया।
भगवान रामजी ने अहंकार के प्रतीक धनुष को तोड़ा।
यह इस बात का प्रतीक है कि जब दो लोग एक बंधन में बंधते हैं तो सबसे पहले उन्हें अहंकार को तोड़ना चाहिए और फिर प्रेम रूपी बंधन में बंधना चाहिए।
यह प्रसंग इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि दोनों परिवारों और पति-पत्नी के बीच कभी अहंकार नहीं टकराना चाहिए क्योंकि अहंकार ही आपसी मनमुटाव का कारण बनता है।
श्री कन्हैया जी महाराज
http://www.shrikanahiya.wordpress.com
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