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श्रीकन्हैया जी महाराज

विश्व प्रख्यात भागवत् कथा वक्ता

Month

March 2016

सब कुछ छोड़ा तुम्हरे कारण

तुम्हरे कारण सब सुख छोड्या, अब मोहि क्यूँ तरसावौ । 

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बिरह बिथा लागी उर अंतर, सो तुम आय बुझावौ ।। 

अब छोड़त नाहिं बनै प्रभुजी, हँसकर तुरंत बुलावौ । 
‘मीरा’ दासी जनम-जनम की अंग सूं अंग लगावौ ।। 
श्रीकन्हैया जी महाराज,गोपाल बाग़,श्रीधाम वृन्दावन
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श्री कन्हैया जी महाराज

मेरो गोपाल

करी गोपाल की सब होई । 
जो अपनों पुरुषारथ मानत, अति झूठो है सोई ।। 

साधन मंत्र यंत्र उद्यम बल, यह सब डारहु धोई । 
जो कछु लिखी राखी नंदनंदन, मेटि सकै नहीं कोई ।। 

दुःख सुख लाभ अलाभ समुझी तुम कतहु मरत हौ रोई । 
‘सूरदास’ स्वामी करुनामय, स्याम-चरन मन खोयी ।। 

श्री कन्हैया जी महाराज

टेर सुनो ब्रजराज दुलारे

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दीन मलीन हीन सब गुनते, आय परयो हौं द्वार तिहारे ।। 

काम क्रोध अरु कपट मोह मद, सोई जाने निज प्रीतम प्यारे । 
भ्रमत रहों संग इन विषयनके, तुव पदकमल न मैं उर धारे ।। 

कौन कुकर्म किये नहिं मैंने, जो गये भूल सो लिए उधारे । 
ऐसी खेप भरी रचि पचिकै, चकित भये लखिकै बनिजारे ।।

अब तौ एक बार कहौ हँसिके, आजहि ते तुम भये हमारे । 
यहि कृपा ते ‘नारायन’ की, बेगी लगैगी नाव किनारे ।। 

श्री कन्हैया जी महाराज

‎विश्वप्रसिद्ध बरसाना की होली की आप सभी देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं

फाग की भीर अभीरन में,

गहि गोविन्द भीतर लै गई गोरी।

छीनी पीताम्बर कम्मर से,

सुविदादई मीडिकपोलन रोरी।

नैन, नचाइ, कही मुस्काइ,

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लला फिर खेलन आइयो होरी।

श्रीकन्हैया जी महाराज, 

गोपाल बाग वृन्दावन 
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श्री कन्हैया जी महाराज

श्रीमदनमोहनाष्टकम्

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        श्रीमदनमोहनाष्टकम्

जय शंखगदाधर नीलकलेवर पीतपटाम्बर देहि पदम् ।

जय चन्दनचर्चित कुण्डलमण्डित कौस्तुभशोभित देहि पदम् ॥१॥

जय पंक्कजलोचन मारविमोहन पापविखण्डन देहि पदम् ।

जय वेणुनिनादक रासविहारक वंक्किम सुन्दर देहि पदम् ॥२॥

जय धीरधुरन्धर अद्भुतसुन्दर दैवतसेवित देहि पदम् ।

जय विश्वविमोहन मानसमोहन संस्थितिकारण देहि पदम् ॥३॥

जय भक्तजनाश्रय नित्यसुखालय अन्तिमबान्धव देहि पदम् ।

जय दुर्जनशासन केलिपरायण कालियमर्दन देहि पदम् ॥४॥

जय नित्य निरामय दीन दयामय चिन्मय माधव देहि पदम् ।

जय पामनपावन धर्मपरायण दावनसूदन देहि पदम् ॥५॥

जय वेदविदावर गोपवधूप्रिय वृन्दावनधन देहि पदम् ।

जय सत्यसनातन दुर्गतिभञ्जन सज्जनरञ्जन देहि पदम् ॥६॥

जय सेवकवत्सल करुणासागर वाच्छित पूरक देहि पदम् ।

जय पूतधरातल देवपरात्पर सत्वगुणाकर देहि पदम् ॥७॥

जय गोकुलभूषण कंसनिषूदन सात्वतजीवन देहि पदम् ।

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जय योगपरावण संसृतिवारण ब्रह्मनिरञ्जन देहि पदम् ॥८॥

॥ इति श्रीमदनमोहनाष्टकं सम्पूर्णम् ॥🌹👏🏻🌹👏🏻🌹👏🏻🌹 श्रीकन्हैया जी महाराज गोपाल बाग वृन्दावन,

श्री कन्हैया जी महाराज

Radha naam jeevan adhar

Radhe radhe

श्री कन्हैया जी महाराज

मन का भाव

नाथ थारे शरण पड़ी दासी, 
नाथ मै चरण पड़ी दासी । 
मोहे भवसागर से तार, 
काट दो जनम मरण फाँसी ।। 

नाथ मैँ बहुत कष्ट पायी, 
भटक भटक चौरासी जोनी मिनख देह पायी । 
मिटा दो दुःखो की राशी, मोहे भवसागर से पार 
काट दो जनम मरण फाँसी ।। 

नाथ मै पाप बहुत कीन्हा, 
संसारी भोगो की आशा 
बहुत दुख दीन्हा । 
कामना है सत्यानाशी, 
मोहे भवसागर से तार 
काट दो जनम मरण फाँसी ।। 

नाथ मैँ भगति नही कीन्हा, 
झूठे भोगो की तृष्णा मेँ उमर खो दीन्हा । 
दुख अब मेटो अविनाशी, 
मोहे भवसागर से तार 
काट दो जनम मरण फाँसी ।। 

नाथ अब सब आशा टूटी, 
थारे श्रीचरणोँ की भगति एक है संजीवनी बूटी । 
रहूँ नित दर्शन की प्यासी 
कर जगसागर से पार 
काट कर जनम मरण फाँसी ।। 

नाथ थारे शरण पड़ी दासी, 
नाथ मैँ चरण पड़ी दासी, 
मोहे भवसागर से तार काट दो जनम मरण फाँसी । 
कर जगसागर से पार 
काटकर जनम मरण फाँसी ।। 

…..हे नाथ! 
मैँ आपको भूलूँ नहीँ । 
मैँ जैसा भी हूँ आपका हूँ और आप जैसे भी है,मेरे अपने हैँ । 

हे नाथ! 
आप मेरे हृदय मेँ ऐसी आग लगा देँ कि आपकी प्रीति के बिना मैँ जी न सकूँ । 

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हे नाथ! हे मेरे नाथ! 
आप अपनी तरफ से मुझे शरण मेँ ले लें । बस, केवल आप प्यारे लगें । 

श्री कन्हैया जी महाराज

आओ मनमोहना

आओ मनमोहना! आओ नन्दनन्दना! 
गोपियों के प्राणधन राधाजी के रमना । 

लालनि एक विनय सुनिए अब मेरी गली में आइये न 
आइये तो करुणा कर के हँस टेर सुनाईये गाईये न 
गाईये तो अधरों धर के मुरली यह मंद बजाईये न 
सरसाईये ना उर प्रेम व्यथा पुनि आइये तो फिर जाईये ना 

कजरारी तेरी आँखों में क्या भरा हुआ कुछ टोना है 
तेरा तो हसन औरों का मरन बस जान हाँथ से धोना है 
क्या खूबी हुस्न बयान करूँ तू सुन्दर श्याम सलोना है 
‘ललितकिशोरी’ प्राण घन जीवन तू बृज का एक खिलौना हैं

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श्री कन्हैया जी महाराज

दरसन देना प्रान-पियारे

दरसन देना प्रान-पियारे । नंदलाला मेरे नैनों के तारे । 
दीनानाथ दयाल सकल गुन, नवकिशोर सुंदर मुखवारे ।। 

मन मोहन रुकत न रोक्यो, दरसन की चित चाह हमारे । 
‘रसिक’ खुशाल मिलन की आशा, निसदिन सुमरन ध्यान लगा रे ।। 

श्री कन्हैया जी महाराज

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