Search

श्रीकन्हैया जी महाराज

विश्व प्रख्यात भागवत् कथा वक्ता

Month

September 2016

रे निर्मोही, छबि दरसाय जा

रे निर्मोही, छबि दरसाय जा । 

रे निर्मोही, छबि दरसाय जा । 

कान चातकी, स्याम विरह-घन, 
मुरली मधुर सुनाय जा ।। 

रे निर्मोही, छबि दरसाय जा । 

‘ललितकिसोरी’ नैन चकोरन, 
दुति मुखचंद दिखाय जा ।। 

रे निर्मोही, छबि दरसाय जा । 

भयौ चहत यह प्रान बटोही, 
रूसे पथिक मनाय जा ।। 

रे निर्मोही, छबि दरसाय जा ।

​श्री हरि भगवान विष्णु नारायण जी!!

हिन्दू धर्म के अनुसार विष्णु ‘परमेश्वर’ के तीन मुख्य रूपों में से एक रूप हैं। भगवान विष्णु सृष्टि के पालनहार हैं। संपूर्ण विश्व श्रीविष्णु की शक्ति से ही संचालित है। वे निर्गुण, निराकार तथा सगुण साकार सभी रूपों में व्याप्त हैं।ईश्वर के ताप के बाद जब जल की उत्पत्ति हुई तो सर्वप्रथम भगवान विष्णु का सगुण रूप प्रकट हुआ। विष्णु की सहचारिणी लक्ष्मी है। विष्णु की नाभी से ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई। आदित्य वर्ग के देवताओं में विष्णु श्रेष्ठ हैं।_

_*विष्णु जी का अर्थ*_- _विष्णु के दो अर्थ है- _पहला विश्व का अणु और दूसरा जो विश्व के कण-कण में व्याप्त है।_
_*विष्णु जी की लीला*_ :  _भगवान विष्णु के वैसे तो 24 अवतार है किंतु मुख्यत: 10 अवतार को मान्यता है। विष्णु ने मधु केटभ का वध किया था। सागर मंथन के दौरान उन्होंने ही मोहिनी का रूप धरा था। विष्णु द्वारा असुरेन्द्र जालन्धर की स्त्री वृन्दा का सतीत्व अपहरण किया गया था।_
_*विष्णु जी का स्वरूप*_ :  _क्षीर सागर में शेषनाग पर विराजमान भगवान विष्णु अपने चारहाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किए होते हैं।उनके शंख को ‘पाञ्चजन्य’ कहा जाता है। चक्र को ‘सुदर्शन’, गदा को ‘कौमोदकी’ और मणि को ‘कौस्तुभ’ कहते हैं। किरीट, कुण्डलों से विभूषित, वनमाला तथा कौस्तुभमणि को धारण करने वाले, कमल नेत्र वाले भगवान श्रीविष्णु देवी लक्ष्मी के साथ निवास करते हैं।_
*विष्णु जी के  मंत्र*: _*पहला मंत्र*_-ॐ नमो नारायण।श्री मन नारायण नारायण हरि हरि। दूसरा मंत्र- ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि। ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।*_
_*विष्णु जी का निवास*_ : _क्षीर सागर में। विष्णु पुराण के अनुसार यह पृथ्वी सात द्वीपों में बंटी हुई है- जम्बूद्वीप, प्लक्षद्वीप, शाल्मलद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप और पुष्करद्वीप। ये सातों द्वीप चारों ओर से सात समुद्रों से घिरे हैं। ये सभी द्वीप एक के बाद एक दूसरे को घेरे हुए बने हैं, और इन्हें घेरे हुए सातों समुद्र हैं। दुग्ध का सागर या क्षीर सागर शाकद्वीप को घेरे हुए है। इस सागर को पुष्करद्वीप घेरे हुए है।_
_*भगवान विष्णु जी  के नाम*_ : _भगवान श्रीविष्णु ही नारायण कहे जाते हैं। वे ही श्रीहरि, गरुड़ध्वज, पीताम्बर, विष्वक्सेन, जनार्दन, उपेन्द्र, इन्द्रावरज, चक्रपाणि, चतुर्भुज, लक्ष्मीकांत, पद्मनाभ, मधुरिपु, त्रिविक्रम,शौरि, श्रीपति, पुरुषोत्तम, विश्वम्भर, कैटभजित, विधु, केशव, शालीग्राम आदि नामों से भी जाना जाता है।_
_*विष्णु जी  के अवतार*_:  _शास्त्रों में विष्णु के 24 अवतार बताए हैं, लेकिन प्रमुख दस अवतार माने जाते हैं-_ _मतस्य, कच्छप, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बु‍द्ध और कल्कि।24 अवतारों का क्रम निम्न है-1.आदि परषु, 2.चार सनतकुमार, 3.वराह, 4.नारद,5.नर-नारायण, 6.कपिल, 7दत्तात्रेय, 8.याज्ञ, 9.ऋषभ, 10.पृथु, 11.मतस्य, 12.कच्छप, 13.धनवंतरी, 14.मोहिनी, 15.नृसिंह, 16.हयग्रीव, 17.वामन, 18.परशुराम, 19.व्यास, 20.राम, 21.बलराम, 22.कृष्ण, 23.बुद्ध और 24.कल्कि।_
_*वैष्णव संप्रदाय के उप संप्रदाय : वैष्णव के बहुत से उप संप्रदाय है*_- _जैसे बैरागी, दास, रामानंद, वल्लभ, निम्बार्क, माध्व, राधावल्लभ, सखी, गौड़ीय आदि। वैष्णव का मूलरूप आदित्य (वेदों के जन्मदाता चार ईशदूतों में से एक) की आराधना में मिलता है। भगवान विष्णु का वर्णन भी वेदों में मिलता है। पुराणों में विष्णु पुराण प्रमुख से प्रसिद्ध है। विष्णु का निवास समुद्र के भीतर माना गया है।_
_*वैष्णव ग्रंथ*_:  _ऋग्वेद में वैष्णव विचारधारा का उल्लेख मिलता है। ईश्वर संहिता, पाद्मतन्त, विष्णुसंहिता, शतपथ ब्राह्मण, ऐतरेय ब्राह्मण, महाभारत, रामायण, विष्णु पुराण आदि।_

_*वैष्णव तीर्थ*_: _बद्रीधाम, मथुरा, अयोध्या, तिरुपति बालाजी, श्रीनाथ, द्वारकाधीश।_

_*वैष्णव संस्कार :*_

_1.वैष्णव मंदिर में विष्णु, राम और कृष्ण की मूर्तियाँ होती हैं। एकेश्‍वरवाद के प्रति कट्टर नहीं है।_

_2.इसके संन्यासी सिर मुंडाकर चोटी रखते हैं।_

_3.इसके अनुयायी दशाकर्म के दौरान सिर मुंडाते वक्त चोटी रखते हैं।_

_4.ये सभी अनुष्ठान दिन में करते हैं।,_

_5.यह सात्विक मंत्रों को महत्व देते हैं।,_ 

_6.जनेऊ धारण कर पितांबरी वस्त्र पहनते हैं और हाथ में कमंडल तथा दंडी रखते हैं।_

_7.वैष्णव सूर्य पर आधारित व्रत उपवास करते हैं।,_ _8.वैष्णवों में दाह संस्कार की रीति हैं।_ _यह चंदन का तीलक खड़ा लगाते हैं।वैष्णव साधु-संत : वैष्णव साधुओं को आचार्य, संत, स्वामी आदि कहा जाता है।_

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

_*श्रीराधे*_  

 _📖 कथा व्यास_ 📖

🙏  _*श्रीकन्हैयाजी महाराज*_🙏

*सम्पर्क सूत्र:-* ↩

📬 _*shrikanahiya1008@gmail.com*_

☎ _*+918791190423*_

       _*+917088884501*_
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

जय चंदन चित चोर

चंदन-चर्चित-नील-कलेवर-पीतवसन-वनमालिन् । 

केलि-चलन्मणि-कुंडल-मंडित-गंडयुग-स्मितशालीन् ।। 

चंद्रक-चारु-मयूर-शिखंडक-मंडल-वलयित-केशम् । 
प्रचुर-पुरंदर-धनुरनुरंजित-मेदुर-मुदिर-सर्वेषम् ।। 

संचरदधर-सुधा-मधुर-ध्वनि-मुखरित-मोहन-वंशम् । 
वलित-द्रगंचल-चंचल-मौली-कपोल-विलोलवतंसम् ।। 

हारममलतर-तारमुरसि-दधतं परिरभ्य विदूरम् । 
स्फुटतर-फेन-कदंब-करंबितमिव यमुना जल पूरम् ।। 

श्यामल-मृदुल-कलेवर-मंडलमधिगत-गौर-दुकूलम् । 
नील-नलिनमिव-पीत-पराग-पटल-भर-वलयित-मूलम् ।। 

वदनकमल-परिशीलन-मिलित-मिहिर-सम-कुंडल-शोभम् । 
बंधुजीव-मधुराधर-पल्लवमुल्लसित-स्मित-शोभम् ।। 

विशद-कदंब-तले मिलितं कलि-कलुष-भय शमयंतम् । 
कर-चरणोरसी मणिगण-भूषण-किरण-विभिन्न-तमिस्रम् ।।

शशि-किरणोच्छुरितोधर-जलधर-सुंदर-सुकुसुम-केशम् । 
तिमिरोदित-विधु-मंडल-निर्मल-मलयज-तिलक-निवेशम् ।। 

‘श्रीजयदेव’-भणित-विभव-द्विगुणीकृत-भूषण-भारम् । 
प्रणभत हृदि विनिधाय हरिं सुचिरं सुकृतोदय-सारम् ।। 

Create a free website or blog at WordPress.com.

Up ↑