अवध ईस वे धनुष धरे हैं, यह ब्रज माखन चोर ।। 


उनके छत्र चँवर सिंघासन, भरत सत्रुहन लछमन जोर । 
इनके लकुट मुकुट पीताम्बर, नित गौवन संग नन्दकिसोर ।।

उन सागर में सिला तराई, इन राख्यो गिरी नख की कोर । 
‘नन्ददास’ प्रभु सब तजि भजिए जैसे निरखत चंद चकोर ।