नेह लगो मेरो श्यामसुंदर सौं ।। 
आई बसंत, सभी बन फूले, खेतन फूली सरसौं । 
मैं पीरी भई पिया के बिरह में, निकसत प्राण उदर सौं ।। 
फागन में सब होरी खेलें अपने अपने बर सौं । 
पिया के बियोग जोगन हो निकसी, धूर उड़ावत

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कर सौं ।। 
ऊधो जाय द्वारिका कहियो इतनी अरज मोरि हर सौं । 
बिरहबिथा सौं जियरा डरत है, जबसे गये हरि घर सौं ।। 
‘सूर’ स्याम मेरी इतनी अरज है, कृपासिन्धु गिरधर सौं । 
नदिया गहरी, नाव पुरानी, अबके उबारो सागर सौं ।। 

श्री कन्हैया जी महाराज